पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४३६

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८५६ मॅचेत ] उत्तरालंकृत श्रए । वानर ी कुशलता जनाध अथपुरी 'का सप फामदेव जग में चद्दन ६ ॥ स्नग्ग रिपु ग्रह जन संप ही प्रमान मेघ इटै शब्द अनुमा के हन हैं। चन्द्रमा सुनर जानि भी राम रहिमान ना ती वा समान वाही के कहत ६ ॥ (६७३) मचित च ६ देलखड़ गऊ मद्देवा के रहने वाले संपए १८३६ में वर्तमान थे। इन्होंने सुदामलीला नामक एक पड़ा अन्य बनाया जा छतरपुर में हुमने देखा है। यह अन्य इमने अपूर्ण पाया । जैसे प्रति में ( इमने देग्नंग ) १६२ पूछ हैं पैर २१ अध्याय पूर्ण हैं तथा घाईसवें अध्याय के ४ छन्' लिखे हैं। पर पूरा प्रन्थ एक ही इन्द्र में है, केवल प्रति अन्याय के अन्त में कुछ देई या सरडे हैइन्होंने घासलीला हा यमला नपतन कफर द्वानलीला का घन किया है। श्रीकृष्ण का मिस इस कवि ने अच्छा का है। इनका पक ग्रन्थकृप्यायन नागकगी इनगे छतरपुर में देखा, जो अपूरों है । इसमें कृष्णचरित्र कृष्ण के आधार पर विस्तृत रूप से वैदिा चपाइये। में कहा गया है, जो परम प्रशंस- नीय है। इनकी कविता परम मनाइर है । इम इन्हें सेनापति की धेशी में उत्रेगे। | शुलफ इस व्याज़ वाली सी पास टुडती आर्य। इंशुराई पारी सहकारी ईसत मन ललचाई ।।