पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४३०

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E५१ मिक्द्र ] उत्तराऊत इरए । छिपा हुआ है कि शिवसिद्दसरोक्ष में इसका नाम तक नहीं दिया हुआ है। इस वर्ष के समय, यश आदि के विषय में इस केवल इतना ज्ञानते हैं कि यद् ब्रह्माकुलभृपया था और इसका चराधान्द्रफा नामक ग्रन्थ पले पद्दल सवत् १९२३ में छपा था, अतः यद्द महा- कचि उस समय के प्रथम हुअा गा ! अपना चिया नी इन ने अपने ग्रन्थ में ही लिग्न दिया है। हम इनका समर सन् १८४० के लगभग मानते हैं, क्योंकि मनियारसिंह अपने में लिपसे ई के "चाफर अदित श्रीरामचन्द्र पण्डित की। इससे विदिताता है। कि ये बालयानिवासी थे और मदि-भाया रचना के समय स० १८४१ में वर्तमान थे। इन का चराचन्द्रिका मामक फेयल ६२ घनाक्षरिया का एक झन्ध हमारे पास है, परन्तु इस छोटे से एक ही ग्रन्थ द्वारा इस फदिर ने वह मैदनों डाल रफ्ी हैं कि इस विपण फा इसके बेड का दूसरा ग्रंथ प्रेज नियलन पनि पात है। इसकी जितनी प्रदान की जाय, घड़ी है। इस में तो जी के चर का वर्णन है ओर विनयविलास, अभयचिलाउ, दिमवविद्धाल, विरदविलास, पर विजथपळाल नामक पछि अध्याय हैं । रामचन्द्र पति में सवमिथित भापा फिी है, अतः उसमें मिलित वर्ग कुछ दिशेज से आ गएँ हैं। इन्हों में मज़ापा में कविता की, पैर अनुप्रास का पुछ सूझ रीति से प्रयोग किया। आप में की हैं इदा प्रेम था ओर आप ने बहुत से परमेचम् झपक फहे हैं। उइदता भी इन की कविता का एक प्रधान पर है। इस ग्रन्थ में एक भी घट शिथिल नहीं है और उत्कृष्ट -*