पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४१०

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धा ! इरान प्रकरण । ८६ ६। किसी सम्बन्ध में कारयः थे माहाशय बाल्यावस्था में ही पी राजधानी झा घले गये । इनके सम्बन्धी की प्रतिष्ठा पा दरबार में अच्छी थी । ये भद्दाशय भी कवि होने के अतिरिक्त भापा, सो चैर संस्कृत के अच्छे पनि धे। अतः महाराज इनका मान करने ख), पद तक कि चE प्यार के कारण इन्हें वृद्धिसेन से चधा फनै को बार इसी कारण इनका नाग येाधा पड़ गया | उनके दरयार में सुभान नामक एक धेश्या थी, जिससे बघा का भी सम्प' गया । इस पति से प्रसन्न हो कर महाराज ने छः महीने के लिए देश-निकले का दंड दिया। इस अवसर में इन्भेने उस वेड्या है विरह में विद्यारी' नामक एक उत्तम ग्रन्थ बनाया जा दम नै देपा । न च महीने के पीछेमाशयदरवार में फिर गये औध इन्दौने राणा के छन्' पदै, तब महाराज प्रसन्न कर इन्हें घर माँगते हे कदा: इस पर ये बोले कि 'मुभान मल्लाह' महाराज ने प्रसन्न है। फर इन इनकी प्रापरी सुभान यचनी दे दी। उस समय से ये अपनी “मुराद र पहुँच कर प्रसन्नतापूर्न नै लगे । अपने इना में इनने सुमन की प्रशंसा के बहुत से छन्द कहे ६। इनषा बारपात पन्ना में हुआ | इनके आम प्रेर मरण के विषय में मई ठीक प्रमाण अब तक नहीं मिला है। ठाकुर मिलिंदजी नै इनका जन्म संवत् १८०४ लिया है, जो ग्रनुमान से ठीक जान पड़ता है। पैाधा एक चपे ही अदाय र जगण्यात कवि थे, अतः | यदि ये संच १७७५ के पहले के देशसे,ते कालिदास जी इनके इंद

  • जारा में अवश्य लिखते। इधर सुदुन कार्य ने संवत् १८१५ के

छगभग सुजानचरित्र बनाया, जिसमें उन्होंने १७५ कवियों के नाम