पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४०

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५१८ मिश्पन्धुपनैः । [सं० १९१९ पदपतरु, फायप्रकाश, 'रामायण' ये पांच अन्य इनके धनाये हुए इमार पुस्तकालय में मैजूद हैं। इन फी धनाई रामायण चिंच और नामा अन्य छन्दों में न अपूर्ण है। यायू यादि सुलेकी दिशा पाशा, आर नदी अहमद ने इन वा टुत दान दिय ६ । इन्होंने अपने अन्य में यह प अपना नाम मणिमाल. भी यहा ६ ।'दमारे पुस्तकालय में इस का फेवल कपिल- पत्रय झन्थ है, जिस में फाव्य गुग्य, इलैप, भलं फार (शब्द पयं अर्थ), दैप, पदार्थनिग्य, ध्वनि, भाव, रस, भाषाभास, घेर रखा भास फा विस्तारपूर्पक घन हैं। इन्हें ने इस प्रन्य में लिपा १६ पि इन की एक पग मी ३ । अतः इन्हें ने प्रायः दशग कविता पर रीति घन्थ लि हैं। इन का बनाया पिगल मने देखा भी है |ौर पद शिवसिंह सेंगर फै पुस्तकालय में है। इसमेजरी नामक एक और अन्य इन का पेज में लिया है। इन की माया-सादिस्य ६ अाियों में गणना है। , चिन्तामगि फी भाषा शुद्ध प्रजभाषा ६, फेयल दे। एक रूपाने पर इन्होंने प्राकृत में भी फर्पिता की थी। ये महाराज पर ही मधुर एवं सानुप्रास झापा प्रयोग करने में समर्थ हुए हैं। इन्हेंाने बहुत विपये। पर बनाना है और ये सदैव उत्कृष्ट कविता रख सके हैं।' ठाकुर शिवसिंजा के सरोज़ में दिये हुए इन के अन्य ग्रन्थों के उदाहरण दैन्नने से विदित होता है कि कल्पतरु के अतरिक इन के घे अन्य भी बढ़िया ६ । इनका बड़े बड़े मद्दष्टापे के यह मच्या मान रहा । इन के दम दास जी की चे में रखते हैं। इन फी ' कविता के उदाहरणार्थ फुछ इन्दु नीचे लिने जाते हैं।