पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३९७

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मिश्रवन्धुपिनीर । [६० १८९६ करा मेरे संग सुन्दर साक्ष्य की अभिराम । | न पान विधान पूरान धरान । यि धाम ॥३॥ होगाचाय पीपि तेरि पल हैं। पारयो मलय पांयी दुल में । ब िअष्टि करि पु विदारय । मईत मटने भूमिप भरिए । मंडल सम फेददि कीन्हें । फिरत नऊ सम गुना लीन्हें । पुपसिंह दिन ब की दुपटं। दावानल सम सर की लपटें | सछि म सके उतष भट पका । थिरि न सके पर चीन नेकी । प्रकार के रुद्र समानः । उसत भी न द्रोगा अमाना । इय गज़ रय भट नागराित काटे 1 घंड मुंड़ से अब महिं पादै । अर्पित किये। धिर की सरिती । निज़मि गिरिवर चरिता॥ निज विक्रम की गुस्ता छन् । सय थर पर भट मति कीन्हें । यहि बिधि निज भट मदत दैसी । सदल सबंधु धर्म नृप देवी ॥ शन समूह सम धटि ग्रति बलसां । भिरयो आय द्विजराज अल सी। ३३ घायु दश है नृख जैसे ! मर्यं पराभित पर भट से न बिज फेसरि झरि से हि पल में ! हाहाकार मच्या पर दल में ॥ अगिनै अळात असंख्यन देखो । म कनि जिम मय सै| मैत्री । तिमि लखि घायजा द्विजवर के। थिरिन सकन अब वैध पर के । जिमि सिंदिलखिमृगगाभागत। भगेजति तिमिगयीं पागद ३॥ गोपीनाथ । भइल अरि की दृषि उईि युग शत्रु मिले हैं मित्र। करत इांचने की जुगुर्ति कपट हैं निह चित्र ॥