पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३७८

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विरोर ] इक्रालाच प्रकारातू । नई फुरंग मह ससक थ६ नहि कलंक नई पंक। चीस दिने थिरहः दद्दी गडी दाठि ससि सके । फरक्ष केकिन मदहि रद्द हुई पद् एषु सुकुमार। मये अमन अति इर्वि मना पाग्रजैन के भार ॥ (८७३) किशोर ।। दिनसिइसराज में इनका जन्म सघ १८०१ दिया है और यह भी छिपा है कि इन्होंने किंशेरसग्रह नामक झम्य बनाया है । इनका फबिनाकाल स० १८२५ से मानना याहिए । इनका कोई अन्य हमारे देखने में नहीं आया, परन्तु इनके ५० से अधिक फुट छन्द नारे घास वर्त्तमान हैं और प्रायः २०० छन्द का इनका एफ सह शो घमारे देखने में आया है। ये छन्द देखने से अनुमान होता है कि इन्होंने कई पद तु पर भन्थ भी धरया होगा, प्योंकि इनके पट फ्लु के घन से बैर उत्कृष्ट छद्र हैं। इनकी कविता चिमुच स्वाभाविकः पचं प्रशंसनीय है। इनकी भाषा मञ्च भापा है और उसमें पिछले वर्ष बहुत कम हैं। इन्होंने अनुमास का गा साधारणतय ग्रधिक प्रयोग किया है । हुम किशोर का पदुमा- फ' कवि की भेंगी में रचते हैं। शिवसिंहजी ने इनफा नाम- आइ के य ईनर लिखा । फूलन दै अ६ देहूं कदम्बन अन्नन बेरिन इचन मैरी । से गधुमचे मधुमत पुजन जन सेार मचीचन दे ॥ प्य सइई सुरुमारि किर अली फल पछि गायन धैरी 1 आयटी चन ६ घर कन्वदि वर बसन्त चन दे ॥