पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३७५

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मिश्शुदिनाद् । [सं० १८२५ चनेय दियत जान यिति गैड । हु पुनि हुथ गराएर भेळ ॥ से पनि छार्च ते नहिं जा । ॐ घर बैंगन दार उपर से घर घर, पनि । हरग्वित सथि जसमवि पनि ॥ से वधि में चालल चलधि मारि ६ वाट । जमति का मैल नियम अँजाउ । नाम-(६६८) बारिशरण, टही सम्प्रदाय के वैध । अन्ध-(१) लोटसप्रकार, (२) सरसर्मज्ञापली । कविताकाल--१८२०।। विवरण--ललितप्रकाश में स्वामी हरिदासजी की वानी, मदाग्यि, जन से अन्य महात्माग्ने तथा मालुमावे के मुलाष्ट्रात करने एवं उनके शिष्य ईग्ने प्राईि के घन किये गये हैं। पविता-मत्कार तैप फी / ी का है। इसमें कुछ ७०९ पद् प छंद है । यद् में देन्ना है। य मनै दरवार इतरपुर तन तमाल तरु मंदिर अनुए साईं चित चितराम जाफे स्यमी श्याम पर हैं। अयि रहो आमा रसियाली गुन गाय ही काय ही सुरति सुधार्स वन मन ६ ॥ हरिदास दिनु रस की ने आम पू | मन जाय पाताय गैा तु मासत मन हैं ! बूंदी अरबिंदन फी तनि मकडे चाय मधुप सुगंध ज्यों में पार्दै मंजु घन में ।