पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३६४

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उत्तरातू प्रकरण । पिले शEिT पनुभिड़े फरीपारा । मिल्यौ सान्नानझिल्ल्यान प्राप्त ।। संझे न चुम्न गिळे भए त । छल्ले घने गत्त चिलें नहाँ मत्त ।। जादत सवच, मंसुर । झुल्यौ एसजान मन त में पूर।। fभायात मनै र्यों की जाल । सबै मैले किये नैन हो लाल ॥ कई चढ्यौ वंति ईवन १ पछि । केहि गद्दी पूछ की राई के दाम ॥ ती इनान्न बाज़ी तह तेग । मार्भा महामेघ मैं चंचला वेग ।। कीन्हो इसान का म्यारिकेचुर। कट्टयों का तीस हट्यो नहीं सूर। नैनन लई सलाम ललाधन स्रान नै (यथाधता ) । । मैं अपने मन में गना बुडी तुरकाना । यथार्थता )। बापु विस चाखे भैया पटमुन्न राखे देखि असन में राख्ने बस बास ज्ञाफी अचलें। भूतन के घ्या असि पास के रवैया और काली के नथैया हुकै ध्पनि हु ते न चलें ! मैळ याश थाइन सभ की गय जाल । भग के धतूरे । पसारि दैत अचले। घर के प्रवाळु यई संफर की पल है। छाज रई कैसे पुद मैदक के मंच 1 ( हास्य) पूत नजबूत बानी सुनंदकै सुजान मानो साई बात जानी जाप्ती' उर में इमा रहे। जुद रीति जानो मत भारत को मानी जैसी हद पुडार ताते ऊन अरामा रहे । घाम और दृच्छिन समाम बलवान जोन फद्दत पुरान लेकि पति यै रमा र६।