पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३१७

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गिभन्दुविनेर। [सं० १६५ और उनकी पाशानुसार इन्दले ससई की एक टीका भी न, सिका नाम सतर्मयाचराध है। उदाहरणार्थ इनके कुछ छन्द नीचे आते हैं, और स्पानाभाव से कहीं वह कुल छन्द न देकर केवल इनष कुछ अंश दिये हैं।इनका इमे सेनापति व मॅगी के कवि समझने ६ मार इस धे में भी इनका पद बहुत अझ ६ । उदाइरगा- वठी नवी पार्वं पघारि लें। रूप सा रतन पाय जान से धन पाय। नाक गैघायया गैयारने का काम है। माया मिठी महिं राम मिलें दुविधा में गये सजनी सुनो देऊ। जा सुका की पेय छुपाय है। गागरि ले भरते निकरी हैं। जानें कहां है कयै केहि पैर हैं। आय जुरे मिते हारी धरी ती ॥ ठाकुर द्वार पर भाई देत माग वची जु क सुपारी ती।। घीर छ द्वार न देई केधार त में ऐरिवारन हाथ पर ती॥ रूप अनूप दुई दिये। तेई त मान किये न सयानि यदायै । और सुनै। यह कप जवाहिर भाग घड़े पिरले के पावै ॥ झाकुर सुम के ज्ञात न होऊ उदार सुने सचदी उठ घायै ।