पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३१२

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नूर इम्मद ! उन्नलिंकृत प्रकरण । ७५ के पद प्यान में नहीं आता कि इनकी स्त्री में भी सन्न प्रकार | से वही सब गुण पत्तेमान ही है। इनमें थे । गिरिधर के र्मों में कहाँ कहाँ अन्य लेाग ने भर अपने छन्द मिला दिये ६, इस फार भी सात से भद्दे छम् हमके नाम पर प्रचलित है। गये हैं। इन्हें ने बाधा नीति के न छू कर पूर्वीय देश में समरदैर पाई हुई परिपाठी की मौत की है। (७३२) नूर मुहम्मद । इस कविरत्न में सवत् १८e ( ११५७ हिजरी) के लगभग तीस वर्ष की मनसा में देरी चापाग्या में जायसी कृरा पद्मावती के ढंग पर इन्द्रावती नामक एक अच्छा प्रेम ग्रन्थ बनाया। इस मन प्रथम भाग प्राय ६५० पृष्ठों ने नागरी प्रचारिणअन्य माला में निफळा है। इन्होंने बाबैला आद् फारसी शय्द, और त्रिविष्ट, सान्त, वृन्दारफ, स्तन्नेरम आदि सस्कृत शब्द भी अपनी भाषा में ये हैं। अपने चारी म्यवधी भाषा में फपिता की है, परन्तु फिर भी इसकी छटा मनगाहेनी है । इनकी रचना में चिबित है कि ये महाशय काव्याग जानते थे । एकाध स्थान पर इन्दौ नै कुट भी पाहे दें। इनका मन फुलनारी बाला वर्णन मद्धा ही विशद चना है और येागों के अवैन ने एय' लट पर भी इनके भाव अड़े ६ । इस कवियर ने स्वाभाविक रन ज्ञापसी पी भनि म विएतार से किये हैं, पर भापा, भाव वधी वन बाहुल्य में अपनी कमिता जायसी ने मिला दी है। इन्ने प्रीति का भी दा ' चित्र दिखाया है। हम इन्हें सैप फयि की थी में गें।