पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२९८

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छाय] उत्तराखंकृत प्रया। ? यह ३२४ पृष्ठ का एक बड़ा अन्य है, परन्तु इसमें श्रीकृष्ण- चन्द्र की केवल १२ घटे फी दिनचर्या वति है। धन्दीजनों ने उन्हें गुणगान करके जगापा, उन्होंने उड़ रूर दैया फो ध्यान करके प्रतिस्प किया । इतने में पंडित लैग ने आदि देकर राजनीति कही, नाभा नैयायिक, ज्योतिषी, सामुद्रिक र वैद्य क्रमशः लाये और उन्हों ने भी बड़े विस्तारपूर्वक अपने अपने विपये के न किगे । तय हुदै ३ भान करके दरबार किया । यहाँ दरयारी, मुसाहेच, साज-सामान, सेना, जवाहरात, घड़े। | के गुण-दोष स्वर औषध, हाथी, उनके भेद एवं दय, गैर विधि भाँति के पहिये में सांगोपांग वन हैं। इसके पीछे शत्रपति मृगया की निकले। इस खान पर चान, सेना, नगर, दम, पक्ष - मृगादि के अच्छे कपन हैं। मृगया में हाथी पकड़ने का यर्यन हैं। तदनन्तर मुनगश यादयराय से मिले और उन्हें आशीर्वाद देकर ब्रह्मज्ञान का कथन किया। इस रयान पर पेयै के आश्रम का भी घन है। झमझान के साथ ग्रन्थ समाप्त हो गया है । इसे अन्य में राजनीति अर्ज की गई है। पनी का वाहुल्य देते थ६ ग्रन्थ बहुत प्रशंसनीय है, परन्तु कई म्याने पर यह काव्य क्षेत्र के बाहर हो गया है । इस कथन के उदाहरणस्वर पैंयफ, ज्योपि, न्याय आदि हैं, जे काय की दृष्टि से अचिकर हो गये हैं, धयर्ष उनसे कवि की बहुशना प्रकट होती है। इस अन्य के उदाहरणस्वरूप घेा छ नीचे लिखे जाते है:- सुधरे लिलाई रात, वायु चै वाद् राख, रसद फी राह रावै, रहसे रहे इन फैा ।