पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२९१

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[सम् १७५ मिधन्युपिनाद । । समझी जाती थी क्योंकि इन्हें में अपने घर बिछगम पर लिखा है। आप ने अपने का घार पुत्र का है। शियहि सरीर में इन विषय में निम्न मार्ने लिए हैं:- “ये कचि अर पारसी के साँझम फाज़िल और भाप नेता में बड़े पुण थे। रसमचाधनाम भन्थ अलंकार में इनका धनाया दुमा घडुन प्रामायिक है। इनके कुतुषपाने में पांच सी जिल्द भाषा- काव्य की थीं ।” इनका जन्म का अनुमान है संयत् १७७६ लगभग ज्ञान पड़ता है, क्योंकि इनके शयन अन्य अंगदर्पण में प्रोटू फविता है। इन्दी ने अपना पूरा नाम ‘क्षी हुसैनी या सती बिलगरामी सेप जाकर मुन सैयद ,गुलाम नबी रसलीन' लिया है। इतनी घासत से मुसलमानो बस्ती का प्रयेाजन ज्ञान पड़ता है। इनके दोनों अन्य, अर्थात् मापदप और 'राम' प्रति ३ चुके हैं और देने हमारे पास सर्च मान है ।। | अंगदर्पण संवत् १४ में बना था। इसमें १७७ देहे हैं, जिनमें नायिका के ननदिस या पन ६। पद वन घड़ी अड़े- कीला है। इसमें उपमाथे, रुप मै|र उमेदवाये चमत्कारि है । “समवेध’ पक बड़ा ग्रन्थ है, जिसमें ११५५ दी द्वारा रस का विषय घडे विस्तारपूर्व और प्रशंसनीय रानि से सापांग गति है। इस अलंकारों को चिपय बिलकुट नहीं कहा गया है। दसे झा वन भाचे के बिना अच्छा नहीं कहा जा सकता, इस कारण रसलीन मदाय नेमाचभेद भी बहुत विस्तारपूर्वक दा है। चभैद में मालम्बन बिमाय के अन्तर्गत मापफ, और नायिका-भेद "