पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२८८

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'सामनाष ] उत्तरात प्रकरण । १६ 'सुत्र प्रतापसिह के यहाँ रहते थे। बदमसिंह के घड़े पुत्र सुरज- | मल युबराज थे और प्रतापसिंह के घेरिंग; मिला था, जिसमें | में रहते थे । सूरजमल के वियां के धन सूदन फयि नै बहुत ही लेखापने फाव्य तारा किये हैं। प्रतापसिए का सन् १७७e ई० तष चित्र रहना अनुमान में आता है, क्योंकि वे सूरजमल के छोटे भाई थे और जगल सन् १७६१ ई० घाली पानीपत को तीसरी लड़ाई के समय वर्तमान थे। | सासूपनिधि रीति का अहुत ही सुन्दर मंथ है। इसमें साम- नाथ ने पिंगल, कविता के लक्षण, अयाजन, फाप और भेद पद्ध-निर्णय, यश, भाप, रस, रखामास, भाभास, दूषण, गुप्त, अनुप्रास, गमक, चिंच घाव्य और अलंकार कहे हैं। पदार्थ निषेप में देवी की भति इन्द ने भो चाभ्य, लक्ष्य मैं व्यंग्य के तिर तात्पर्य भी माना है। इस का निम्न लिस्वित कण इन्होंने यदुत यथार्थ दिया है:- सुनि विस क्वा चिच मधि सुधि न रहे छु । यि मगम पाई मैाद मैं से इस फदि सिरभैर.॥ शृंगाररस के अंतर्गत नाशिको मैद मी बहुत विस्तारपूर्षक कहा गया है। रसे के पीछे प्रतापसिंह के धीं मेर धेशी का या धन हुअा है। सोमनाथ जी नै दशग गाविता की इस एक ही ईध में घटुत उन्कृष्ट प्रकार से दिखा दिया है। धीपति पर दास जी के सिवा इनफा ति ग्रंथ प्राप. बेर सत्र याचाप' के रीति-ग्रंथी से रीति के चिश्य में त्वर ।