पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२८६

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

महाकवि ] । बत्तरालंकृत प्रकरण । 'प्रन्थ है । यद्द अन्य टा देने पर भी इज़ारा' ही की भंति सुपारी हैं। नाम-१ ७१८) विद्यनारायण गाजीपुर। अन्य-१ लीलप्रन्थ, ३ सन्तविकसि, ३ भानग्रन्थ, ४ रान्त- सुन्दर, ५ शुन्यास, ६ सन्त चारी, ७ सन्तोपदेश, 4 शब्दावली, ९, सन्त परवाना, १० सन्तममा, ११ सन्तसागर, १२ सन्तचिंचार । रचना संय--१२ । निव--ॐ महाशय शिवनारायण पन्ध के चलाने वाले हैं। इनकी रचना साहित्य की दृष्टि से विकुल साधारण है । नाम- 19 १६ } महाकवि । कविता-काल-f७९३ के लगभग ! विवरण नहीं रचनी बड़ी मारिणी होती थी, परंतु इनका फाई अंध न मिलता है। इनका एक ही इद हमें याद है और चट्टी सुदरीतिलक एव शियस दुसरीज़ में है। इमकी गणना साधारण व में है। इनका मान दल पारी बंसीधर ने लिया है। ' राधिका माधचे एकही सेज़ मैं धयि नै सोई सुमाय माने । पाई महाकवि कान्; के मध्य में राधे की यह बात न होने ।

  • सावरी देगी सुवरे संग में वायरी हि सिखाई है.कानें।

होने का रंग पसी गे वै कसैटी की म लौ नई साने ॥