पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२८२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

६३६ दलपतिय बंसीधर ) उत्तराशंकृत प्रण । तन में रयि । तबिम्प प करने से घनी सरसाती । ” भीतर हो रहे बात नहीं आया चर्कवैध ६ जात ६ राती । झिा पछि कोठरी में कोई तैप फरी बिनसी बहु भती। सारसी नि लै रिस सा बैंम फाम कहा कहि धाम में जाती। | ७१६ च ७१७) दुलपति राय तथा बंसीधर । इम देने कवियों ने मिल कर अलंकार रत्नाकर नामक झन्थ संवत् १७९२ में मनाया। दुलपति राय महाजन और बंसीधर ब्राह्मण थे । ये है। कवि अमदाबाद के रहने वाले थे। अमदाबाद से - गुजरात के अहमदाबाद का प्रयेाजन जान पड़ता है। इन | उदयपुर' पादे जगदोस के नाम पर पेड़ अन्य बनाया है। शुद्ध शव उदयपूर और जसिद्द हैं।मद्दरािा जगसिंदी संवत् '३७३१ में सिंहासनारु हुय थे और संवत् १८०८ में परलोकगामी हुए। उनकी थट्टाई में पद्द छन्द लिया गया है:- सकल मदीपन के राजेंसिराज राज पर उपकारी परी भारी दुख दन्द के। वैद्य जगलैस धीर गुहा मैमोर धरे जिन पिप पदच्छ फैज फट्स के ।। प्रभुत फास अति सूप के निवास स्वाई। | प्रगट कास मेटें जग दुख हुन्म के । मेघ से समुन्दर डे पररथ पुरन्दर से रति पति सुन्दर समान सूर नन्द के । । अस्टंकार रत्नाकर में ज्ञाघपुर के महाराजा जसवन्तसिंह के