पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२७४

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उधर , दास] चररर्जकृत प्रकरण । रचना ले मान्य है। इस की कविता के विषय में इन्हें नैलिखा है कि, आग के सुकवि झि ६ ती फयिताई नती राधिका फन्हाई सुमिरन का बहानेा है । कविता द्वारा शिक्षा फी इन्द्द ने अच्छी महिमा कही है। प्रभु ज्यों सिधै ये मित्र नित्र ज्यों सा फधा। काय्य सने की भेद सुवासिख दान तियान | ॥ इनके मत में कविता बनाने के लिए शकि, निपुयता, मौर अभ्यास की आवश्यकता है। इन्हों ने कहा है कि- रस कबिता । भग भूषन हे भून सकल । गुन सुरू अम् रंग दून करै कुरूपता ॥ भाषा रक्षण इन्होंने यह दिया है - ब्रजभाषा मापा चिर कई सुमति सब केाय । मिले ससकृत पारसिद् में बाहि प्रकट क्षुद्देय है मिले अमर ज्ञ माध नाग गमन भाच्चाने । सहज पारसा ६ मिले घट घिधि वयित यखाने ॥ ने तुलसँ मैरि गग की इस कार कविया का सरदार माना है कि उनके कार्यों में विविध प्रकार फी मापानें मिलती हैं। इस उन्ध में पदार्यलय, रसाँग, भाव, चनि, अहंकार, गु, चित्र, तुका, यि, र वैवार के घन दें । इसमें दासी ने पिंग के छाडे र पिर फैं प्रायः सभी पा के वन येि है और यह रीत प्रपे में परम प्रशसनीय मन्/ में से एक माना दाता है । इसके अोपात यानपूर्वक पढ़ जाने से मनुष्य