पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२६७

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

६६४ ' मिश्रबन्धपिनाई ! [ ० १८५• किसी समय संक। घर्षों तक राव भाम राज्य स्थापित नहीं [ । इस हेतु समस्त भारत की एकता का भाव हिन्दू राज्य- काल में उत्पन्न मरा हुआ । मुसदमान-काल में हिंदू मुसल्माने के झगई। से हिन्दूपन का भाघ ती उठा संगर इस विषय पर मन्थे र इनै, परन्तु समाज का ध्यान फिर भी देशभचि की और ना गया । अतः जीवन-हाड़ाबल्य एवं वैश-मति के अभाव नै मरि समाज एवं कविगण फै। लेापार विष से वंचित रखी। -कविता भी इस समय देश में ज़ोर पकड़ ही थी । इन्हीं | धातों के प्रभाव से उसके कविगया भी लेाकेापका पिपये की आर न झुके। उर्दू-कर्मियों में ईयर-सम्बन्धी प्रेम का न माद | ला पो, से इम्यों कथा-मासगिक पय भकि, अन्यों की ओर भी | पनि न देकर अपना पूर्ण चल पार कविता में लगाया । इस वात व मी प्रभाव दिन्ट्री में शृंगारवर्द्धक हुपः । | सुमारे यहाँ राजयशफीने से हिन्मी-विता की उत्पत्ति | हुई थी, परन्तु पीछे से धार्मिक विषयों ने कार्य का प्रासंगिक छाल का कुछ मन्द कर दिया । सम्य पर धर्मकविता ने घढते हाट्ने z'गार-कविता वा रूप अप किया पर तृप्त फया-प्रास- गिक पति का प्राचीन धर्मप्रथा से सम्मेलन हुआ। इस हेतु इस उत्तरालंकृत काल में ऐसे ग्रन्थों का चिोपवया प्रादुर्भाव हुआ चार महाराजा राजसह, दास, मधु सुद्नति, प्रजघासीदास, छलकदास आदि ने धर्म चिपय लिये हुए थापासनिक कार्यवा , की । भाषाभारतरचयितामों में अनुवाद हारा इसी प्रणाली का । पुष्ट किया, और लल्लूलाले एवं सदल मिश्र ने अट्री ली गद्य में