पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२६५

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८३ मिस्त्रचन्भविद् । [१• १८५ पिता थे। पिपप के उपकारी होने पर अवश्यमेष ध्यान रम्ना" चाहिए, पर शव के साथ पना पता है कि उत्तराला काल के पपिए पा ध्यान चिौपम्प से इधर नहीं रहा । इस कारण यदि उपर्यागी प्रथों पर पाना अन्य ग्रन्थ से लगाया जाये ने घE सन्तोपदृयिवः नदी ठाएगा । वरियों का उचित |६ के पे उग्छष्ट चर्पने के साथ चख पिया का भी सबैय ध्यान रखें । इस समय कचिपा ने फायक का पढ़ाने पर ध्यान पयस रफ्घा, परन्तु विषय-शथिय से उनके अन्य तादृश लाभदायक नहीं हुए। फिर भी वह सदैव ध्यान में रत्रना चाहिए कि काव्योत्कर्ष अनेकानेक कार के होता है, शिन में विषय की उत्तमता पयः है । अतः अनुपपैग विषयों का भी प्रष्ट्र! फान्य तिरस्कराय नहीं है। इस अचमुख को पूरा घाझा चिये ही के सर पर पन्ना भी नहीं जा सकता । यह भी कारगण र योग्य घात ६ वि कवये के भी विचार साधारः जन समुदाय की उन्नति के अनुसार चलते ६ । [मार यह अंगरेजी राय से प्रधम साधारय मनुष्य के विचार नै दुत अच्छी उन्नति न पी थी । पाश्चात्य प्रकार की उस सभ्यता का प्रादुर्भाव हमारे यहां नहीं हुआ था, वन- घोड़ के प्रविष्य से ऊपन्न होती है। प सदैव से चद्द एज्य- प्रणाली एप मेंशदशा अच्छी समझी जाती रही, कि शिस में पकत अली है और एक कार्यकर्ता इतना पैदा कर सके कि, जिससे दस मनुष्य छ । इन कार्यों से यदी अँगरेज़ के पूर्व आप का पहा सामान्य था । इमने अपने पाळ-काठ में पैसे