पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२६१

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

Fिधधन्धुविद । [सं० १८७* | टापुर और पाधा कवि इस बात में परम प्रेमी है। गुजरे हैं। इस रपय के मकानेक ववि प्राचार्यय ६ जा सक्ने ६, क्योंकि मतेने नायिकाभेद पर पिता पी ६, परम्नु मुग्नया दास, सेममाघ, रघुनाथ, मनीराम मिंध, पर 4 साल चर्गिय हैं। पलपतिराप पंधर ने मापाभूषा फी पुषः प्रशसनीय ढका धनाई । गाने वालों में खेपत् १८०० में लगमग विराम निवासी मीरा मद नायक प्रसिद्ध हुए। गायक गया अब भी इन के मार पर नियत दिने पर गाने वाढे ६ । महाराज्ञी रघुरास, दास, पदन, मैकुलनाथ, गोपीनाय, मशिदेप, पद्मविर, मदनदास, घासीदास, पैर ललकदास ने इस काल में यथा प्राप्त कि 'दिरोय फपिता पी है । इन सय में गैफुद्धनाथ, गेनार्य, और मणिदेय का श्रम परम सराहनीय है कि ६ ने मिल कर ! महाभारत ऐसे उचम और भारी अन्य का विशद् पद्यानुवाद या। सम्मन ने नोति के चटफीले घई ६ हैं। सार पाल में श्री एप्पचन्द्र के भङ कवियों ने शुगर सम्धी कविता केवल भक्तिमय से ही बनाई, घर उप के पीछे से अभह सेागे ने भी प्य के सारे ऋगार कविता का हुन्छ मद्याया। इस प्रथा नै भूप। मेरदेष के समय में विशेष प्रति पाई पर इस दास पद्माकर वाले समय में इसकी इतनो भरमार हुई कि प्रत्येक कवि नायिका भेद, पटनु, मैनपयि के अन्थों का बनाना अपना फर्सय सा समझने उगम् । एतु में भी नेस- कि पदार्थों पी डैड कर केवल नायिका नयी इ पर रिप- तपा एमारे कवियों का झुकाब हो । समय पाकर स्त्री यि में