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सेनापति
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पूर्णाकृत प्रकरण

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सेनापन अH4 पूर्तत किए 1 पर इस अपि झी स्वतन्त्र अनुमविर्या द्रष्टय हैं, जिनमें से कुछ यहाँ लिनी जाती हैं। आपने परम झरि मुंह निवागे। तैब हैद करतार करशरि तुम फाई के । घातुसिला दहि निरधाम प्रतिमा फै। सारु सै न करता है बिचार बैठ गरे। कई म सँदइ ३ फहे में वित्त देह है। फही है धीच दैइ १ कहा है पीच मै॥ तारि म पाईं को रिफ, उपाठ व हत हैं अपाङ्ग उचित है। फतु हैं। तिथे न भगति जानै ६ नभ गति जब । तीरथ चलते मन ती रथ चलते हैं । सेनापति के गुण पि हम यपाशक्ति ऊपर दिखा चुके । पड़े शेक का विषय है कि इस ऋषि के फेवल ३८४ छन्दै का एप अन्य हमें देने को मिली। इतनी सोम फवक्ता सूमने वहुत ही थाई कवि की दी है। प्रत्येक छन्द में सेनापति को रूप देन पड़ता है । इतने कम छन्दे में इतने विचार गर वैन में बहुत फम ॐग समर्थ हुए है । अपने अन्ध में खेनापति ने घाई रारा में नहीं रखा है। जाने पड़ता है गले चे महाशय फुट परिता बनाते गये हैं और फिर इन्हें नै संवत् १७ect में उसे पषत्र करके प्रन्यस्वरूप में परिणत कर दिया। इनका काय फक्षपद्म भी अवश्य ही उछम देगा । अनुमान से जान पड़ता है कि ‘कालिदास इजारा' में लिम्चे हुए इसके स्फुट छन्द कवितरक्षा