पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२४७

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१११ मिन्युविना । । [१, वाघन गया बँग्रि दानन ॥ ६ ड्रिगि सन १ गया है। पर हर पाई हैं। गज़न ६ गयी धूलि हरिद ६ सीन पर बैंदन १ गया काहू दाद न यताई ६ ॥ जच्च ६६५ म हुरी ६ निफ्टे गये | हरि मी तो कहा है। मति भृद्ध ड्राई है । केऊन उपायभटकत जिन बैंक मुने मसाट के नगर पदमल की दाद्दाई है ॥ (६६ १) हरिकेश परि सेतुंडा देल्पड घास कारवना- काठ १७८८ के गभग हैं। इनका केाई ग्रन्थ में ना मिला, परन्तु इन्हें नै चीर रस की रचना वही उत्तम आर जरदार यी ६ । आग महाराज्ञ साल वैलरड घाटे में यहाँ थे । इन इम सेनापति की थंग का कवि समझते हैं । उदाहरण ।। रहे इकन के सत्रद निस होत बिहीं सनन की सेना अनि मैरकी। हार्थिन । झु ८ मारू राग के उमड़ है। | चदि की नई वदी इमङि समर की। कई हरिकेस की सारी ६ मचत यों ज्य लाले परसत छनखाल मुख पर की। फरक परके घाटु अस्त्र बाहिये । कर्क कि उढे कडौ ।तर की ।