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सेनापति
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पूर्णाकृत प्रकरण

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३६ सेनापति ] फुलांत मकरः । केता फरी काय चैये करम लिनेय नसे दूसरी न देय र सेाय ठच्चराइए। आधी ॐ सरस धीति गई है घरस अचे दुवन दरस बीच रस न वदाम् ॥ वित्ती अनुचित ध धरङ्ग उचित छैनापति है सुचत रघुपति गुन गए। चार बरदान त पाय फमलेछन के पायक मशैछन के फाहे की कदाप । | इनकै चित्त का पूर्ण वैराग्य निम छिपित छ से पूग्नप्रकट होता ६ र पद भी मालूम पड़ता है कि प्रद्द गलि भद्दथे । यथा -- मदा मैंद कंदनि ॐ जगत जवदन में दिन दुन दंदन में जाते हैं बिद्दाय के । सुन्न को न लेस है कलेत सघ भवन की | सेनापति ग्राही ते इन प्रलय है ॥ अवै भन देसी र चार परियार त । डा लेकीहाज़ के समाज चिसय ६।। इरिजन पुजने झै वृदावन कुञ्जन * दो बैनि कहूं वर घर तर जय के ॥ ठाकुर शिवसिंह ने लिखा है कि इन्हों ने क्षेत्रसंन्यास है छिया था। इनकी कढिा से हाल होता है कि ये क्षेत्रसंन्यास होना भी चाहते थे, क्योंकि ये वृन्दावन की ट्रॉमा के चार जाना नहीं चाहते थे।