पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२२८

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६४४ नियन्धविनाद। [१० १७८ कविता में आये हैं मैं यदुत ही प्रेमपूर्ण हैं | पृन्दावन से इन इतना अधिक प्रेम था कि पवः दफा ये कह से श्रन्दाबन आ रहे थे, परन्तु यमुना के विनार पहुँचते पहुँचतै त श गई ! उसे जगह नाव इत्यादि का कोई साधन पार उतरने का नै था पीर न इनका यमुना जी किनारे श्री वृन्दावन से अलग रात भर पहा रहना सह्य हुअा, पत: ये ज्ञान पर खेल कर यमुना जी में कूद पड़े और पार होकर उन्धने पहुंचे जो इन्होंने स्वयम् लिखा है:- देख्यो श्री पृन्दा विपिन पार । विन्न पद्दत यहाँ गभीर धार । | नाई नप नहीं कई मंगर दाय। हे दई का कर्ज उपाय । रहे चार लग्न के में राज्ञ । गए पर पूरे सक्ल पक्ष । प्रेम पप के पीछे ६ यह ज्ञाया न सुहाय । | मल दिन ६ ग्रानु का प्रिंय सनमुग जिय जाय ॥ यह चित्त माझ करे के विचार। परे फुदि कूदि अल मध्ये धारः ॥ चार है रहे यार ते पार भए भय पार। दरसे चु दा विपिन विच राधा नन्द कुमार | रासलीला का घन इन्होंने बड़े विस्तार मेर उत्तमता से किया है। आपने रामायण की वैया भी की है, या होली के पउँन कई स्थाने में बड़े ही मौद्रिक्रिय हैं। ईवी की ये बहुत ही पसंद करते थे। इन्होने एक जगह की है कि - स्वर्ग पेट में हारी जा ना तो कैरो कहा ले कई ठकुराई । इनकी कविता बड़ी ही सरस, हृदयाति और धी राधा । '