पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२११

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श्रीपति] पून। इरा । भापति कि सैाति इञ्जि मलिन हेदि | पि फुमुद फूल, नन्द के दुलारे ६ ॥ रजन मद्न मन गैजन विरह चिनि ज्ञन सहित चन्द मदन निहारो है ॥१॥ भन की भीर के दर्शन सनर धर लति है मन्द अब तुम i फित रहे । कई कवि श्रीपति वा प्रमल चलन्त मति- गत मरे कान्त के सहायक जित रहे । भागवि बाई जुर जार ते पवन ३ के पर धूम भूमि में सहारत गिते रहे । रति के बिलाप देसि फराना अगार फछु लेाचन के मूदि ६ तिला वम चिर्वे रई ॥ २ ॥ श्रीपति महाराज ने रूपक और उपायें चहुन सुन्दर पही हैं ओर जा विषय उठाया है उसी पर पौयूप-घर्षा की है। इनका निवास-न फाल्पा था । इनके विषय में उपर्यु ६ या इनके अन्य ३ ही शत हुई हैं। (६४४) महाराजा त्रुिश्वनाथसिंह। | मंदराजा अपवंद के पुत्र देवर महाराजा रघुराज सिंह के पि । धे। अपने पिता के पीछे आप संधत् ३७६८ (सन् १८३५) में पांच सिद) नरेश हुए र संवत् १७५७ (सन १८५४) तक राज करते रहे। ये महाराज य} कवि थे और कवि एवं द्धिा का इन्होंने अच्छा सम्मान किया । इनकी झापा प्रजमाया