पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२१०

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६३६ | मिसयाधुविद् । [सं० १७७३ अन्धे के नाम ज्ञात हुए हैं, जो नीचे दिले जाते हैं । घार सरोज १ श्रीपति सराज ), पिंप्रमविस, गवरपडून, सरोज कन्दिर, पद्म, रसगरमनुग्नास नदय, मार डकार गि इनके अर्थों के नाम हैं। इन मादाय नै दश पाय पर रीति ग्रन्थ बनाये ई पर सब अगे। या भली भाँति घर किया है। यूपी के उदाहरण में इन्होंने दावेदास की कविता के शुन्द भी ये हैं। पप्य रीति जानने चाई में दासजी एक अधान कवि है। उन्होंने कायरीति परम गम्भीरतापूर्वक कही है। पर उन्होंने शी श्रीपति महाराज वाले अनेकानेक भाव बहुतायत से अपनी कविता में जैसे के तैसे चुरा पर रप लिये हैं और रक्खे भी हैं अपने प्रधान गुन्धरायने में इससे धपति महेद्य षा मद्दत प्रकट होता है। इनकी कविता अत्यन्त मर्मर, निर्दोष एव मदिर है । इन्ने अनुप्रास चार चमक फेव तदुत अदिर नहीं दिया और कुचित रीति से इनका पगम किया। एने अपनी रचना में काम प्रणाली के ऐसा साफ किया हैं कि चित्त प्रसन्न हो जाता है । दम फो इनके अन्धे में केवल पति सरोज के देने का फैधाग्य प्राप्त | हुमा है, पर इस एक ग्रन्य से इनकी आचार्ययता भलीभांति झलकता है। हम इन्हें दास कवि की श्रेणी में प्रेगे। उदग्दरगा। घुघु उदय गिरिवर से निकल रूप- सुधा सा काले यि कीर्ति चमारे है। इरिन हिंदी स्पाम सुन्न सौद्ध अरपत करपत सीफ अति तिमिर दिया है।