पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२०८

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६३६ नियन्धुदिइद। [सं० १५७1 सुनक ६ म ध वसन तन मरा मन प्रजर्मल के उड़न अटॅालमा || ३ ।। जात नए नए नैद के मार घिन्ने उर ओर प्रती घनी' । आनंद में मुसकान उझोत में दो ६ ३ालन संरत प्रम के । भैर की भान प्रान अकार किंप नितही घकि प्राए जई' के झारिए जू तिन तार के झालन पर दिनान में लागत नौके ।।४।। बिरद्द चिंचुरे पर पूरे मन सबन के । | शनि ठीस भयो जिन्हें पल पहन की। सैघ आप्त पेसन सा छाय कैसे कर जिनकी इस दरसे परवा पलन हो । या विधि वियाग बचिरेर मया ६ अन्न सुव | चाहत ज्दैग महा ईनर, दलन के । आनंद पद के पपीनि ६ छाये। अब | दम दुसद् घाम स्याम के चलन को ।। ५ ।। ऑपिन का सुन्न निहारे अमुना कै हैरत स सुख थाने में मत देखियेई हैं। गैर स्याम का दस ६ दग्स जी गुपित प्रगट भावना विसैविधेई है। जुकूल साप्त रन दौद्धि पर ही | अंजन सिँ गरि रूप अपरेसई ६ । 'पानैद के मन माधुरी और कार लागि रदै तल्ल त्रहिन की गन्न पियेई ६ ॥ ६ ॥