पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१७८

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मिधयन्धुविनोद। [सं० १७१ सबके साथ घड़ी घड़ी शादी की थी, या तक कि अवे में प्रदूल के साथ ३० जार न थी । इन सय का शुद्ध प्रकाश में बहुत उत्तम रीति से चर्यित हि घेर भिमै भी सदद्दीन पय अदुख- समद का युद्ध पड़ा ही विशद ६ । म सच में केवल और अफ़ान के सामने से पका भरि छत्रसाल थे। गागना पड़ा । इस समय संवत् ३७६३ में पारड़घ वा मृत्यु ईट गया चार उनके पुत्र प्रद्दा- | झुरदाधि ने छत्रसद्ध है। मित्रमापे से बुटीकर उनसे लेइमिदं जीत देने की प्रार्थना की । इसपर सुसाट ने वादाद की हद्दा गढ़ जीत दिया । तव ।दार ने इन्हें दे। परेड़ पय घोप्पिक साय के राज्य का ( जो इनके ज़े में थो) स्वतन्ध राजा मान लिया । | इसी स्थान पर उधपणा समाप्त gी गयी है। इसके कुछ पद्दले किसी ब्याज से लाल ने किया है । छत्रसाल के युद्ध के अतिरिक्त, लाल ने पंचम और उ-कथा का १० पृष्ठ में उत्तम अर्गन | उठे अध्याय में बहुत इत्तम दर्शन किये हैं। छत्रसाल की प्रशंसा के कुछ छन्द नीचे लिये जाते हैं। छत पुरुष लच्न सब जाने । पछी लत सगुन वक्षाने । संत कवि कबित भुगत रस पारी । बिन्सन मति अर्थन में आने कांच से छत सुरंग है नीकै । पिइँस लेन मुजरा सव ही है। कह्यो पन्य हित र उतारे । तुम कुल चंद हिंदुगन तारे ।। घीकि चै|कि सय दिसि उठ सूत्रा चान खुमान ।, | अब ६ घाई कैन पर लाल चलान ।। कमी भगे हि ये जाने । कारी परी, *. १ । । ।।