पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१६६

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१८।। भित्र-दिनार । [१० १७६१ विचार करने के पगड़ी में इसे मध दिया था। ग क ने पगडी, रंग दर पार द्वारा पूरी करते. उसी प्रकार उसी गुट में वध दिया । इस का पद याद था- "टि की फैन फाटि विधि कुचन मध्य धरि दीन । "मालमर्जी ने अपनी पगड़ी ले जा का जव य६ पद पड़ा है। उमें रंगाई देने गये और उससे पूछा कि, "इस दाई के किसने पूरा किया ? उत्तर पाया कि "। यस ग्राम में एक ना पगड़ी फी रंगाई और एक सदस्न मुद्रा देई फी घनयाई न कचि को दिये । उसी दिन में इन देने में प्रेम हा गया और अन्त में अलम में मुसलमान मत मह करके इसके साध निकाह कर लिया। कहते हैं कि - ने सपने पुत्र का नाम ज्ञान रफ्धा था । एक चार आलम ६ प्रयदाती शाहजादा मुम म नै हँसी करने के विचार से | से पूछा, “ ह्या पलम की आरत अप ही हैं ?" इस पर उसने | तुरन्त उत्तर दिया, "इ। जहाँपनाह ! ज्ञान की मां मं ।” मुन्नी देवीप्रसाद जी ने उपयुक्त दोई के म्यान पर एक कृति के तीन पद लिये ४ नेर रोग द्वारा उसके चैथे पद का यनना लिई है 1 द चिंच यह हैः- प्रेम रंग पगे जग मग जग जामिन के धन की अति जगि जेर उमगत हैं। मदन के माते मतदारे पैसे घुमत हैं। | झूमत । मुकि मुके *पि इयरत हैं। अलिम सी नवल निकाई इन नैनन फ। पतुरी पदुम । “घर थिरकत हैं।