पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१५८

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पिचार में नोच मानी हुई जातियों के मनुष्य के कत्ति पढ़ने के संभाग्य माप्त न हॅम चाहिए था। | इनकी कविता में अवध और प्रज्ञ की भाषा का मिश्रण है। अपि भापा गिरधर राय के देखते बहुत परिपफ है, परन् यी कहना चाहिए कि या अच्छी है, केवल एकाध स्नान पर उसमें ग्राम्य भोपा मिल गई हैं। इनकी कविता में अद्वितीय उद्दती एक अनुपम गुण है। भाषा- साहित्य में किसी भी भले या बुरे पचि में इतनी उदएता नहीं पाई | जानी।भा में बहुत से कवियों में उद्दता अभिकता से है, परन्तु उसकी मात्रा सबसे अधिक इसी कप में हैं। गिरधरराय की भांति इन्होंने भी ति बेर अन्योक्ति का प्राधान्य रजा ६ । सिने भी गिरधर राय के समान रोज़ की काम-क्रोश-सम्यन्निनो सर्वप्रिय घाती पर कविता की है। जितने गुण गिरधर राय में ६ मायः वे सय इनमें भी घर्तमान हैं, पतु उन में वे प्राधिय दाते में इनका | पद उनले पढ़ा हुआ है। इनकी भी कविता सर्वप्रिय पत्र प्रदाता- प्राप्त है। इसके समान सीधै सादे यथार्थ वर्गइन करने में बहुत कम कचे जन समर्थ हुए हैं। इनका भी इम पद्माकर की क्षेत्र में समझते हैं। इनकी कविता दुधाप्य होने के फारच इम इनके सात छन्द नीचे लिखते हैं। जैध उग आए भेग जीभ चङ्गु रोग वढाये । जाभि कर उद्योग जीभ ले कैद करावै ॥ जीभि स्वर्ग है ज्ञाय जैभि सच नरक देपावै । भि मिलाबै राम जीभि सब देद्द धरापै ।।