पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१२७

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नेवान] पुर्वातंत प्रकरण ! १४५ कवि छत्रपाल के समय में हुए जैसा कि भगवत ववि ने कहा है, कि भड़ीं अनु कहि करत ही छात्रा महाज्ञ । जहँ भगवत गीता पढ़ी तहँ फर्षि पढत नेवाज ॥ यह दावा भगत के वान पर नेवाज के मुकर छा जाने पर पना था । इनका नाम दास ने भी लिया है, जिस से स्पष्ट है विः । ये संवत् १८०० से प्रथम के हैं। नेवाचं फांचे प्राझ ६ ! इन्की कई प्रय सिवा कुन्तला', नाटक के इमने नहीं देखा है और इनके फुट छन् । इन चैाई मिलते हैं, परन्तु छन्द नितनै मिलै मैं सब अनमेल हैं। आपके किसी छन्द में हमने निष्पाञ्जने अथवा भर्ती के शप्द ना पाये, तथा सण छन्द टकसाली पध' परमासम समझ पड़े। इनके छन्। में न कहीं मानेां की कमी हैं मैर म चाफ्यशैथिल्य । इनकी भाषा मैचल दरजे की है। इस मावे की जितनी प्रशंसा की जाय दी है। ये माशय सेनापति की श्रेणी के है । यह फ बड़ाही आदिकमिाज पार सच्चे भाचेां का वर्णन करने वाला है। इन्याने सुप्ता के पहछे म छन्द कहे हैं । उदारणार्थ इनके चल दी छन्द या लि जायेंगे । इनके भा} में अइलीलता की मात्रा विप है, परन्तु व एक भी अश्लील नहीं है। इसका सरस भट्ठार झाता के अर्थमा का है। यच्च भी ठाकुर की भांति स्वाभाविक र सशा कवि था ये बड़ा ही प्रेम है। गुज़रा ६! सुयोग ऋगार में इसने क्रम तोड़ दी है।