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हिन्दी की दशा
४३१
पूर्णाकृत प्रकरण

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हिन्दी की दुशा] पूर्वार्ताकृत प्रकरण । ४३ प्रासंगिक ग्रन्थ रचे, परन्तु किसी अन्य सुधि का ध्यान इस मै न गया | इन कशा में मुसलमान कवियों ने और साधारण पियें। का आदर विया, परन्तु शेप कचिय नै राम था कृष्ण के ही प्रधान रखा । उस समय के चहुत से भक सुकवियों ने निशेषतया - भक्ति पूर्ण स्फुट छन् पब' पदों पर सन्तोष किया। | इस पूर्वएत काछ में भक्तिपूर्ण कथा प्रासंगिक सत्य में जनता दुई पैर के छत्र तथा सवलसिंह । महाभारत का कथन किया, परन्तु इम अर्थों में भी भक्तिप्रचुरता नहीं पाई जाती। सेनापति एव दैच में भी कुड़े कुछ कथाप्रसङ्ग चलाया है, परन्तु उन्होंने कथा की और इतना पतला, तथा रे फाग्योत्कर्म पर इतना आपका प्यान रखा है कि उन्हें को-प्रासंगिक फन फना माद्द फलहा । नुकमियों में धर्म से सम्बन्ध में अपने बाली कथाये" मेवाज, लाल, पर्य' सुरत ने कहीं। सै। इस समय में कथा-प्रसङ्ग का विशेष घल नहीं हुआ, परन्तु फिर भी लाल के हुने हुए यडू विभाग हीन नहीं फच्चा आ सकता। धर्मप्रचार में इस काल केवल सामी मायानाथ पर गुरु मैथिन्धसिंह थे, सेा धर्म- चर्चा का भी बाहुल्य ने था । भक्त यिों में सुन्दरः, ध्रुवदास, नागदास पन' सेनापति प्रघान थे । इन मामे से प्रकट है कि इस समय भक्ति कविता का धान्य विल्कुल न था, मेर 2ङ्कार तया चार रस नै साहित्य पर पूरी प्रभाव डाला ।। इस काल को ,सप्रधान गु यत् हैं कि इस के फर्थिये ने भापा की लंत पने में पूरा चल गया । प्रौद्ध माध्यमिक वाल में भापा भटीभांति रिपफ दे चुकी थी, अतः पूर्वाद्ध