पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१०६

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

। रिन्युयनाद। [५० १५३१ में से प्यार जनाया भली धधि जानी छानी हिंतून फी नयिक ! सांय कि भूर्गत सौन्द कि सुरनि मन्द किये शिन फार्म ३, साय । | देखिय एज एन बि पुज र अति गुजन ये नुय नीन । नैन त्रिसाल दिये धन माल पिल्लाफन रूप सुधा भरि पीने ॥ ज्ञामिन मि कि कैन । जुग ज्ञात न ज्ञानिये यो छिन । आनंद यां उमग्यो रहे पिय मंद्दिन यी मुघ देखि नै ॥ सराहर५ फी पक शुद्ध हस्त लिपित प्रति हमारे पास है, परन्तु हमने पण्डित बलदेवप्रसादजी मित्र द्वारा इंटियम प्रेस में मुद्रित सदस्य का इपाला दिया है। राज में इनके द्रोण पर्व ( १७३७), गुण रसरहस्य ( १७२४), और संसार भामक तो अन्र्थों का नाम, घेर लिप्त है। हाल में युक्तिनगिनी और भन्न शिद्म नाम इनके ६ ग्रेन्थ चार मिले हैं। युक्तितरङ्गिनी संचर १७४३ में अनी । कुलपति की गणना दास चालीं थे में है। इमर्क रचना में परम प्रीद फाय है। (४ २६) भगवान हित ने संवत् १७२८ में ८८ भारी पृष्ठों क अमृत घारा' नामक दहा चैपाइयां में एक यिद अन्य रचा, जे छत्रपूरमें हैं। इसमें चैराग्य, योग, भक्ति प्राई के घर्शन हैं। इन्हीं। अपना फ्यान क्षेत्र राज लित्रा है। कहते हैं कि ये क्षेत्र घासा में रह थे । अपि अनदास के शिष्य थे। आपके पार भी भरि व घानी तथा रामाय अन्य मिले हैं। इन गणना भैणी में हैं।