पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१०४

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१३३ मिधन्धुचिनार) [६० १७२। | काय तीन प्रकार का होना है, अन् उत्तम, मध्यम पर मधम् । पुरूपति के अनुसार उत्तम काय में रन घर व्यंग्य की , प्रधानता देता है, मध्यम में 'ग्य पैार अर्थ की समता रहता हैं ६ नमघम में व्यंग्य का अमय एघ चित्र का प्राधान्य देख पड़ता है। रसभ्य के द्वितीय अध्याय में शन्दार्थ-निर्गय है, और तृतीय में ध्वनि, रस घेरि सामप्ति अादे के कथन हैं।घायै अध्याय में व्यंग्य बैर पत्र में ट्रैप कहे गये हैं। देश का पर्यन धडाडी उत्तम है। छठे अध्याय में गुण, सातरों में शन्दालंका र आदरें में अर्या- कारे का वन कर ग्रन्थ समाप्त हुआ है। कुलपति के मन में उपमा अलंकारों का प्राप्त है। से। विदित आता है कि पुलपति ने कैच रद्द का वचन नहीं किया है, वरन कविता के ई अंगे। तः समावेश इसरस्य में हुया है। अतः इस ग्रन्थ का नाम फाय- रहस्य हैना ने अधिक उपयुक्त होता । सकारों के उदाहरण में कुछपति ने प्रधानतः अपने महा- राज्ञ रामसिंह फी प्रशसा के छन्दू कहे हैं, जिनमें से बहुम से श्रेष्ठ हैं, परन्तु यशधन में इन्होंने घस्निानक घटना का सहारा कम या हे घेर वा प्रशंसा अधिक की है । इनकी प्रशंसा की मुच्यांश पैसई हे कि नाम बदल कर पट्टी इन्द किसी महाराज की प्रशंसा में कहा जा सकता है। आमेर गढ़ के शीशमहल का इन्होंने भी वन किया है। कुलपति कहाँ कहाँ प्रति मिश्रित भाषा भी लिवाते हैं। और एक छन् (पृष्ठ ८७ नम्बर ५२) में इन्होंने अष्ट्री चाली की भांति ३६ मिश्चित भाप भी लिखी हैं।