पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१०१

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कुलपति] पूछूट प्रकरण । दीन्हो फुल्याइ दिलीप फी अय कीन्ह वज़ीरन का मुंह कारो। नाया न मयदि दक्सिन नाश न साग में सैन ने हथियार । (४२७) गद्दाधर भट्ट जी र सम्प्रदाय (चैतन्य महाप्रभु बली ) में । इनका कविता-काल मायः संवत् १७३२ के गभग जाँच में न पड़ा है। इनकी एक यानी इमने छघपूर में देवी, जिसकी रचना बड़ी हानी है। हम इन्हें पद्माकर की श्रेया में इसातै ६ ।। सद्दाहरण । का पीत सिरा असित लसत म्युज एन सँग । टोल ल म लाल भ्रमत मधुकर मधु भा । सारस अरु फलस केक केलाद्दरका । पुलिन पवित्र विचित्र रक्त सुन्दर मनहारी ॥ | (४२८) कुलपति मिश्र। । कुलपति थ माशुर ब्राह्मण अर्थात् १५ दें । चतुर्वेदी माझ में मिध, शुक आदि सभी पद ते ६, और उनमें से में गाय मिश्र धै। इनके पिता का नाम परसुराम मिश्र था, पैर में महाशय मरिसद्ध बिहारी सरासपार के भानजे से, पैसा सुना गया है। ये आमारे कै नाइने वाले थे और जयपुर के मद्दराजा ,,अपरिह के पुत्र महाराजा रामसिंह के यहाँ रहते थे। रामसिंजो सन् १६६७ ६० में सिंहासनारूढ़ हुए। इन्ही महाराज के पिता