पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/७७

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भूमि से उद्गे निकलता हैं, जो क्यिोंग श्रृंगार की एक दशा है। दो में यहाँ दौ-एक स्थानों में लघु की जगह गुरु अक्षर अाए हैं, परंतु पिंग- वाचार्यों ने इस्दै दोष नहीं माना है और ऐसे अवसरों पर मृदु उहा' करके गुरु से लघु म प्रयन ने लिया है। कुल मिलाकर यहाँ उत्तम छान्य है। यह प्रकाश श्रृंगाररस का उदाहरण हैं ! | मम्मलित भावादि क्रिस: दूरे वर्णन में सम्मिलित प्रभाद, शीळ-गुण अादि का दिदए यहाँ गोस्वामी तुजुरस-कृत र भानुप्रताप की कथा के सहा क्रिया जार है । पाक महाशय उस दर्शन को पढ़कर इस करन के देखने में विशेष अानंद श स हैं। इसमें उपर्युक्न गुण-दोष ३ दिसलाकर इस वर्णन एवं सम्मिलित प्रभाद-संबंधी कथन करें । प्रतापभानु तथा अरिमर्दन ऐसे नाम हैं, जैसे क्षत्रियों के होने चाहिए । सचित्र र नाम धर्नरुचि भी अच्छा कहा गया है । वर्णन बहुत छोटा है, इससे कवि ने उपांग को छोड़कर कथा के मुख्य ही पर ध्यान क्या है। इसी से राजा सत्यकेतु का ज्ॐष्ट पुत्र को राज्य देर हरि-सेवा-हित बन जाने में कहा राया है, परंतु यह नहीं

  1. ि पूर्व प्रथानुसार ऐसा हुअा, अथवा राजा ने अवस्था के उतरने,

भक्वि-प्रचुरता, सांसारिक अनित्यता आदि के भाव को पुष्ट मानकर ऐसा किया । इस प्रकार सैना, शुद्ध आदि का विशेष चर्घन न करके कवि नै राजा द्वारा विश्वविजय-सत्र कह दिया है। | राजा के सुराज्य का कवि ने कुछ विशेष कथन किया है कृत्रि को राजा ॐ साथ सहृदयता का रखना ऋई उचित करिए से अभीष्ट था, सो ब्राह्मणों के साथ गुप्त परामर्श द्वारा उनके वेश करने के लिये को आगे थोड़ा-सा अपराध किया था, उसे राजा के अन्य गुण ॐ अागे तुच्छे दिखाने के विचार से उसने गुणों को कुछ सविस्तर कुथन् प्रथम से कर दिया ।