पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/७५

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. भूमिका गुण परकीयावाले अभिसार के कारण हुआ, स प्रथम व्याधात हुआ । इन सब अलंक्रारें में समाधि मुख्य है । रगण पहले पीछे आ रहे थे कि इतने में जिले से नायिका सट्टाकर ठहरी । इस विलंब से भर आगे बढ़ और और अंधकर फिर हो गया । रात ॐ झरों को उड़ना कालविरुद्ध दूध है, किंत *विजन इसका वन करते हैं, से यह दोय नहीं है। माध, कादंबरी एवं लतिरास में ऐसे ही वर्णन हैं। चंद्रोदय होने पर मैं इच्छा-सिद्धि से नायिका भुदिती भी हुई। इस दोहे में दचक चमत्कार होते हुए भी व्यंग्य प्रधान है। क्योंकि इसके प्रायः सभी भाव व्यंग्य से निकलते हैं । ॐद् में समाधि अलंकार में पूर्वरूप का व्यंग्य हुअा हैं । यहाँ औज-गुण प्रधान है, किंतु गौण-रूप से अर्थ व्यङ्ग र काँति भी हैं। इसमें अभी वृत्ति है । नायिका सार हैं। रात्रि की कुंजादिक का गमन ग्राम- ता-प्रदर्शक है, परंतु काम-ग्राबल्य नहीं हैं अँर नायिका पद्मिनी है, सो नागरत्व प्रधान रहो । परीया नाझिा होने से पात्र व्यंजक हैं। ऋ गरि-रस मैं यहाँ नायिका र माङ अलंबुन हैं । यद्यपि दाय का प्रकट कथन नहीं है, तथापि वह ना जायगा, क्योंकि दिन उसकी इच्छा के अभिसारित्व नहीं होता । भ्रमर एवं ॐकार उद्दीपन हैं। सटपुनः संचार व मधुएं का शर्त? अँधेरी कर लेना अनुभव है। एताचता यहाँ पूर्ण प्रकाश शृंगार-उस है ।। व्यंग्य कविता का जीव कहलाता है, सो यह रचना उत्कृष्ट है ।। | लेखराज-कृत छंद करि अंजन मंजर रंजन के मृर कंशन लेमन बी झखियाँ : पलट की ओट बचाय कै चट अगट सबै सुख में खियाँ । लेखराज है अभिलाख लखाय के लाखन पूरे किए सखियाँ : तेई हाय बिहाय हमैं जरि जय हे जी क जवाद भई अँखियाँ ।