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मिश्रबंधु-विनोंद

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३। मिश्रबंधु-विनोद एम० ए० तक भी पढ़ाई जाये तो कुल क्लास के लिये दुसबीस वर्षों तक को विनोद में लिखी हुई पुस्तकों में से नए-नए पाठ्यग्रंथ सुगमता से चुने जा सकते हैं। फिर भी प्राचीन समय में बेळ, तार, ढाक, प्रेस तथा पुस्तकालयों के प्रभाव से सैक ग्रंथ लुप्त एवं नष्ट हो गए। इन्हीं अभाव के कारण कवि लौरा औरों द्वारा रचित अंय का हाल पूर्णतया नहीं जान पाते थे, से एक ही विषय पर सैकड़ों, हज़ारों ग्रंथ बनते चले गए । प्रेस के अभाव ने हमारी विद्वन्मंडळी एवं भाषा को ऐसी प्रचंड हानि पहुँचाई कि जिसका अत्युक्लि-पूर्ण ऋथन होना कठिन है। साहित्यगरिमा पर स्वतंत्रता-पृर्वक उचित विचार करने से प्रकट होगा कि लाभदायिनी पुस्तकें तो हमारे यहाँ कम हैं, परंतु उक्लि-युक्ति-पूर्ण अकिक आनंददायक ग्रंथ भरे पड़े हैं । यहाँ साहित्य-गांभीर्य खव है, परंतु अँगरेज़ी की भाँति विषयों में फैलाव नहीं है। हमारे यहाँ अवनति में रहते-रहतें और सभी बातों में हीनता देखते-देखते लोगों में आत्मनिर्भरता इतनी कम रह गई है कि वह अपनी किसी वस्तु को पाश्चात्य पदार्थों के सम्मुख प्रशंसनीय नहीं समझते हैं। इस कारण से साहित्य-गरिमा की अलौकिक छटा रखते हुए भी हिंदी-क्राच्य उन्हें पाश्चात्य कवियों की रचनाओं के सामने तुच्छ हुँचता है। हमनें, हिंदी-नवरत्न में नव सर्वश्रेष्ठ हिंदी-कवियों पर • समालोचनाएँ लिखी थीं। उनमें यत्र-तत्र उन कवियों की प्रशंसा • करते हुए हमने अन्य भाषाओं की अपेक्षाकृत हीनता को भी कुछ कथन किया था। इस पर एक, सहृदय समालोचक महाशय ने प्रसिद्ध मासिक पत्र मॉडर्न रिव्यू में हमारे अंथ की उचित से भी अधिक प्रशंसा करते हुए इतना अवश्य कह दिया कि ग्रंथ में ठौर-ौर उमंगकनित अत्युक्लियों के भी प्रयॊग हुए हैं। हमने उमंगचश कई कथन नहीं किया, क्योंकि समालोचना लिखने में शब्द