पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/५१

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. भूमिका ११ प्रारंभकाल के कवियों में कैदल पुष्य झवि की जाति में संदेह है, फिर भी उसका बनाया अलंकार-मंथ अबको प्रथम होन पर भी संदिग्ध ही है और अभी तक इसके अस्तित्व पर भी पूर्ण विश्वास नहीं होता । इन कवियों ने रायश बन के साथ वीर और अंगारेरसों की प्रधानता रखः । कथाएँ तो इन्होनें कहीं, परंतु शांति और स्कुट विषय की उन्नति न हुई, १चं गद्य और नाटकको अभाव रहा। उत्तर प्रारंभिक काल में धीर, ऋ बार, ईति और कृथा-विभागों के प्रायः समान उद्धत हुई, तथा इन सवा कुछ वल , परंतु ते । अंथों और नाटक का अभाव, इवें स्फूद्ध दिया तथा गद्य क थिन्य बना रहः । इस समय से ब्राह्मणे ने भी महात्मा नौरखनाथ की देखदेखी हिंदी को अपनाया । पृचं अति नै प्राकृत मिश्रित भापर का चलन रहा, परंतु उधर में कोई भी भय स्थिर न हुई और विविध कवियों ने यथारुचि ब्रज, अवधी, राजपुतानी, बड़ी, पूर्वी आदि

  • भाटों में रचना की । पूर्व माध्यमिक कक्ष में बीर और श्रृंगार-क्काब्य शिथिल हो गए, परंतु नाटक में कुछ बस्य पढ़ा ! शेप बिभाग प्रायः जैसे के तैसे रहे, किंतु भागों में ब्रज, अधी, पूर्वी और पंजाबी की प्रधान हुई । प्रौढ़ साध्यमिक शा में ऋगार, शांति और कथा-विभाग ने अच्छी उन्नति की और स्फुट दिएको एवं गद्य ने भी कुछ बल पाया । भाषाओं में सबको इद्राकर ब्रजभाषा प्रधान हुई और अवधी का भई कुछ सान रहा । पूर्वाश्चत काल में वोर एवं रीति-वर्णन ने और पकड़ा और शेर की विर वृद्धि से शांति-रस दब गया । ब्रजभाषा का अर भी बल दड़ा और अवधी दबने लगी ! उत्तराल कृत्त झाल में शुगर तथा रीति-

वन की विशेष बल-वद्धि हुई और कथा एवं गद्य को भी चमत्कार देख पडा, परंतु वीर-काव्य मंद पड़ गया । ब्रजभाषा का महत्व पूर्ववत् रहा, किंतु अवधी की कुछ बृद्धि हुई और लड़ी जी की भी कुछ प्रतिष्ठा