पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/४३४

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गई । हमने अपने मित्र रत्नाकरजी' से प्रार्थना की कि वह हिंदी-साहित्य-रत्नाकर के मथकर एक ऐसा अनमोल रत्न निकालें, जो . बिहारी सतसई का शुद्ध, सप्रमाण, सुंदर, सटीक, सटिप्पण एवं सरल संस्करण हो । बिहारी के चई अनन्य भक्त तो थे ही । उनको यह बात अँच गई। फिर क्या था ! बड़ा परिश्रम और धन व्यय करके बिहारी की सभी टीकाएँ, प्रकाशित और अप्रकाशित, एकत्रित की गई । लगातार कई वर्षों के घोर परिश्रम और अपनी प्रखर प्रतिभा के फलस्वरूप उन्होंने यह बिहारी-रत्नाकर तैयार किया है। | ऐसे धुरंधर विद्वान् द्वारा इतने परिश्रम से लिखी होने के कारण इसका पाठ शुद्ध और प्रामाणिक तथा टीका सुंदर और सरल होने में तो कोई शंका ही नहीं रही । | पुस्तक के अंत में कई पशिष्ट भी हैं, जिससे बिहारी के संबंध में भी अनेक बातें विदित होती हैं। | बड़ी खेज, परिश्रम और धन-व्यय करके बिहारी का खःस चित्र भी प्राप्त किया और इसमें दिया गया है। और भी कई रंगीन और सादे चित्र हैं। ऐंटिक कागज़ पर छपे हुए इस ग्रंथ-रत्न की निछावर केवल ५)