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मिश्रबंधु-विनोंद

३५४. मिश्रबंधु-विनोद बाळस, बिदेस नए दुख को जनमु. भयो, . . ... | पावले हमारे बाई बिरह बधाई है ॥ २ ॥ अक मुबारक तिय बदन लटकि परी यो साफ़ ; खु सनदीस मुन्सी मदन, लिख्यो झाँचे पर क़ीक़ ॥ ३ ॥ सब जग पेरत तिलन कों, थक्यो चित्त यह हैरि । तब कॉल के : एक तिल, सब जग डार्यों पेरि ॥ १३॥ ( १८६) बनारसीदास | ये महाशय स्वरसेन जैन के पुत्र संवत् १६४३ में उत्पश्च हुए ३। इन्होंने १६१६ इथेंत अपनी बृहत् झीवन-चरित्र ६०३ दोहा- चौपाइयों के अर्द्धकथानक-नामक अपने ग्रंथ में दिया है। उसके पीछे भहीं ज्ञात है कि इनकी जोबनयान्ना कब तक स्थिर रही । ये जहरी थे और जौनपूर तथा आदरे में रहा करते थे । इनका जन्म-स्थान, नपूर था । युवावस्था में इन महाशय के आचरण बहुत विगढ़ : गए थे और इन्हें कुछ-रोग का दुःख भी झेलना पड़ा, पर पीछे से इन्हें ज्ञानं हो गया और इन्होंने अंगार-रस का अपना ग्रंथ गोमतः, नर्दी भें फेंक दिया । बनारसीविलास, नाटक समयसर, जाममाला, अद्भुकथानक, तथा, बनारसः पद्धत्ति-नामक इनके पाँच प्रेथ हैं, , जिनमें से प्रथम दो हमारे पास वर्तमान हैं । खोज में इन्हीं : बनारसीदास के मोक्षपदी-ध्रुव-वंदना तथा कल्याण-ढिर भाषा- दामक ग्रंश भी मिले हैं। चतुर्थ त्रैवार्षिक खोज रिपोर्ट में इनके दो प्रय, घेदनिर्णयपंचाशिक तथा मान विद्या-नमक मिले हैं [ खोज ६६०० ]। बनारसी-विलाल २१२ पृष्ठों का मंत्र इनकी स्फुट कविता : का संग्रह हैं, जिसमें घनाक्षरी, सवैया, छप्पय, दो, चौपाई आदि हुस-ॐ ॐद मैं कविता की गई है और कई पृष्ठों तक ब्रजभाषा का राई भी है। नाटक समथसार नाटक-भ्रंथ नहीं है बरन् ऊ उत्तम, उपदेश-प्रेथ अहः कुंदकंदाचार्य-कृत इ. नान के एक अंथ ॐ