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मिश्रबंधु-विनोंद

३४६ मिश्रबंध- थि६. अंथ—प्रताप-ौहत्तरी ।। विनोझल--१६१० । मरण १६३१ । । विवरण--महाराना प्रताप झा यश और अकबर की निंदा । इस्खोऊ . सुः ६० के बराबर । नाम--(१७६) नागरीदास वृंदावन । बिहारिनदास के शिष्य थे। ग्रंथ-( १ ) समयप्रबंधसंग्रह ! अष्टक, बानी, दोहा, पद । कविताल-१६१० । । विवरण-इन्होंने हितहरिवंश, हितध्रुव, व्यास, ऋणदास्र, गोपीनाथ हित, रूपलाल हित तथा नरवाहन इत्यादि महात्माओं के औंर अपने भी पदों का संग्रह १० मृ । में किया । यह ग्रंथ हमने दरवार छत्रपूर में देखा । . काय इसकी साधारण श्रेणी का है। ६ } प्रवीणराय वेश्या महाराज इंद्रजीतसिंह ओरछा- वाले के पास थी । इसी के वास्ते केशवदास ने कविप्रिया बनाई। यह बेश्या होकर भी अपने को पतिव्रतः समझती थी । एक बार अकबर शाह ने इसे अपने यहाँ बुलाया, पर इंद्रजीत सिंह को छोड़कर इसने वहाँ रहना पसंद न किया । यह कविता भी साधारण श्रेणी की अच्छी बनाती थी । इसका समय १६१०. के लगभग है। ......... .... आईं ॐ दुकान मंत्र तुम्हें निज श्वासन स सिगरी मति गोई । देह तों कि तजें कुल कानि हिए न ल लजि सव कोई । स्वारथ है परमारथ को गध चित्त विचार कहाँ तुम सोई। जा रहे प्रभु की अनुदा अरु र पदित अंश न होई । यह छंद्र इसने उस ससव इंद्रजीतसिंह को सुनाया जब अकबर ने इसे बुलाया हुई है.

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