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मिश्रबंधु-विनोंद

सिग्नबंधु-दिनोंद | इनका पूर्वोक गुण इनकी पैनी दृष्टि का एक उदाहरण है। इसी प्रकार इनकी दृष्टि सभी स्थान पर रहती है। इन्होने थें ही बहुत स्थानों पर सच्ची-सच्ची बातें सीधी रीति पर कह दी हैं, जो इस अमर भल्ली मालूम पड़ती हैं । सदको सद कोऊ करै के सुद्धाम के राम ; हित इहीम तब जानिए अद कछु अटकै काम। धन द्वारा अरु सुतन सँ क्यों रहे नित चित्त । महिं रहीम कोउ लख्य गाढ़े दिन की मित्त ! काज परै कुछ और हैं काज सरे कछु और } रहिमन भरी कै भए नदी सेरावत मौर। । रहिमन कि कुम्हार से माँगे दियो न देइ ; .. छेद ६ अंडा ढाविकै चहै नाँद बइ लैइ ।। इस कवि का तहबा बहुत ही क्ढ़ा हुआ था और अपने अनुभव के कल-स्वरूप इसने यह दोहा कहा- अझ रहीम मुसकिल परी गाढ़े दोऊ काम ; साँचे हे तो उग्र नहीं झूठे मिले न राम ।। . इन्होंने इतनी यथार्थ बातें कही हैं कि इनके बहुतेरे कभन कहा- क्तों के स्वरूप में परिणत हो गए हैं- जे गरीब को श्रदरै, है रहीम बह ढोग ।। कहा सुदामा बापुरों कृष्ण-मिताई-अंग ।। . : हो रहीस का हुतों ब्रज को यहै हवाल ; तौ हे कार पर धयों गोबरश्न गौपाल ।। मुकता कर अरपूर कर चातक कृष इर सोय । " स्तों अड़ों रहीम अल कुथल परे थिय होय । ये महाशय सुस्लमान होने पर भी कुछ और राम के पूरे भक्क थे। इन ईंवर पर पू विश्वास था । .