पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/३६७

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प्रौद् अध्यमिक

. झाँटनवार को जारी ज्यों में ये हो ? बहीं है जब अर्को दी हौ न धीस ; ऊ में हिदो कुचित राति उक्ति न होय रहीभ । ५ रहीम दर-दर फिरै भाँनि मधुकर स्थाहिं । . या यादी छड़वह ३ इअ अ हिँ ! कहते हैं कि फिर भी एक चक्क कै छारण विवश होकर सहभ नै बाँ-नूझ से १ लक्ष मुट्ठी महँगकर उसे दिए। इस अवसर र इन्होंने यह दोहा बनकर रीडाँ-नरेश के मुन्नयि श्री चित्रकूट में रमि रहे हिमन्द अवध-नरेश ; | हा र बिपुर रति है को आए झि दे ।। . इनका शरीरात संवत् १६८४ में हुआ । हे महाशय अरबी, फारसी, हिंदी और स्कूल के पूर्ण विद्वान् थे और इनकी गुणहर के रछ कबि, पंडित आदैि सदैछ इनकी असा में प्रस्तुत रहदै थे। गंग र इनकी दे या रहती थी और ॐ भी इनकी समी के इशाः ४ । पंडित छेद तिवारी ने Wिखा . ३कि इन्होने रहोम-सतसई, बरवै नायिका-भेद, रास्टपाध्यायी, भद- झाष्टक, दीवान झारसी और वाकयन्स चादी कर ली-अनुद, ॐ छः ग्रंथ कुनाए । इनमें से द्वितीय मुद्रित और अर्थम के इस्त-लिखित दौ सौ इरई दोहैं हमारे फुल्तकालय में स्वतन्त्र हैं। मंथ इसके नहीं । ईशचसंहसरोज में इनका इ उदार-सोरठा-नास्त्र एक और भ्रंथ लिखा है और मुनाष्टक के इलाके थे छेद जिले हैं ऊनीं भा खड़ी ही है- लक्ष लक्षित द्धा, छा वाहिर जड़ा था। छुपर्छ चखनवाला, चाँदनी में खड़ा छ । ट-तट बिच मेछा, ईति सेवा दे । अलि अब्देल्ली, यार मेरः अद्र ।