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मिश्रबंधु-विनोंद

मिश्रर्बधु-विनोद हरवि हिंडोरे रसिक रासवर जुगुल परस्पर झूले । बिटुल विपुत्र बिनोद देख़ि नभ देव विमानन भूलें। कहते हैं कि इनकी आँख की पट्टी स्वयं श्रीकृष्क्षचंद्व नै छ रास मैं खोजी । स्वामी हरिदास के पीछे यही उनकी मद्द के अधिकारी हुए } एक बार रास में ये ऐसे प्रेमन्मत्त हुए कि वह इक्य शरीर छुट गया है। ... { ८० ) गए । इनका नाम भाषा-साहित्य-प्रेमियों में बहुत प्रसिद्ध है और आप की कविता भी लोग बहुत पसंद करतें अथ हैं, परंतु कैद । विषय है कि इनके चरित्र एवं काव्य दोनों से लुप्तप्राय हो गए । किं पता तक नहीं लगता । इर्ष की बात हैं कि यं० मयाशंकरी । याज्ञिक ने इलाके कई सौ छ द परिश्रम से देंढकर एकत्रित किए हैं। आशा हैं, वें उनके प्रकाशित करने को भी प्रबंध करेंगे। इनकी अलि के विषय में भी संदेह हैं। बहुत लोग इन्हें ब्राह्म ऋते हैं, करें। कुछ लोगों को यह भी मत है कि ये अह्मभट्ट थे। जनश्रुति द्वारा प्रसिद्ध हैं कि ये महाशय आदशाही दरबार में भी बढ़ी कि से बातचीत करते थे। हमें इनके ब्राह्मण होने की बात यथार्थ जान पड़ती है। इनकी सौदे के विषय में भी मतभेद है। अहुत झक' विचार हैं कि ये महाशय किसी बड़े श्रदसी की आज्ञा से हाथी द्वार चिरवा ले आए थे । ३ जोंग अपने कथन के भाछ में का दोहा और अन्य छैद पेश करते हैं। उनके मुख्याँश नीचे दिए जाते हैं.... कबहुँ न “डुबा र चड़े कबहुँ न बाजी दै. . हक नाहि प्रक्षम करि बिदा हल दि ईय । गंदई ऐसे गुन। ॐ यंद क्रोिइ । ।