पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/३३२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२९६
मिश्रबंधु-विनोंद

मिश्रबंधविनोद . ॐ प्रधान अमात्य हो गई } मालगुज़ारी-विभाग में इनका दिशेनवाई बंदोबस्त था, पर एक बार बंगाल की गवर्नरी आरकें भी इन्होंने उसे ठीक कर दिया था और पठानों का बढ़ चूर्ण करके विद्रोह शांत किंया । भारत में सदैव से दफ्तर में गिरी अक्षरों का प्रचार था. और वह मुसलमान के काल में भी स्थिर रहा । इस प्रकार हिंदी प्रचार से एक क्षति भी शो कि हिंदू होगा फ़ारसी नहीं पते थे, सो साधारश हिंदू सरकारी उच्च पद कम पाते थे। यह सोचकर टोर- अज़ में सरकारी दफ्तरों से हिंदी उठाकर उनमें झारसी का प्रचार कराया ! इससे हिंदुओं को खाभ अवश्य पहुँचा, पर इतनी हानि भी हुई ॐि हिंदी का प्रचार सरकार से उठ गया। महाराजा छरमण हिंदी के कड़े भी थे, पर इन कृविता साधारण श्रेणी की है। उहरसु--- .. : ।

. सोहै जिन सासन में तुसानुसासन सु,

जोके दुखहारी सुलझारी साँची सामना । | जो गुन भद्रकार गुण भद्र झाको जानि, ' भङ्ग गुनधारी भव्य करत उपासना ।. ऐसे सार सास्त्र को प्रकास अर्थ जीवन में, बने उपकार नासै मिथ्या भ्रम वादा ता. देस भाषा अर्थ को कस कर जाते, | मंद बुद्धि हू के हिय होवै अर्थ ासना । (७७) बीरबल ( ब्रह्म ; महाराजा । . महरामा बीरबल का जन्म संवत् ११८३ में तिकवाँपुर जिला कानपूर में एक साधारह कान्यकुब्ञ ब्राह्मण गादास के यहाँ हुआ था। इसको उल्लेख अशोकस्तंभु, प्रयाग में है। उस पर खुदा हुआ है-*संक्त्, १६३१ शाके १४६३ मार्च बड़ी ५ सोमवार गंदा सुख महरको बीरबल श्रीहरुथरा श्याम की यात्रा सुफल छिसितं।”