पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/३३१

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ढ़ साध्वनिक्ल-अकृद्ध ३६१ दैननि नितु हरिबंस सि छिल-छिन्द छु इटल नुन् । बि-कित इत् सन् जहाँ इंपतिं कियर र ? हैं हर त हेरिइंस जहाँ हरबंस वहाँ हरे ; एक सबद हरिबंस सदी राख्यो समीप करि । इरिस नाम सुप्रसन्न हरि हरि प्रसन्न हरियंस इति । हरिबंस चरन सैक्क ईलते सुनहू कि इस रीति गति । शाम ७४ हरिवंयुअर्ड ! ४-१ हिला४% प्रथम ३ द्वितीय है। कदैतालाल-६६१० } • चिक्र ---इन्हमें स्वामी हरिबंशजी के ये अष्टङ सय ३ झवत्ता में रचे, जिनमें 44 बूंद हैं। इनके कथित सुध्दा इड श्रेणी में हैं। ये अंथ इनै दरवार छन्नर मैं ३ ६ } ये हरिवंशी के सामाज्ञिक सुने अखें हैं । उद्दिश्या--- ब्युरी सुश्री अञ्जकै बॐ बिच अादि ऊपढ़. परी जु छली ! मुसुक्राले अझै दसनावलि देखि बाल तथे तब कुंद-कुली । . अति चंचल नै फिरै चहुँ नित योखद खालं हैं मत भलः । दिनुके पदपंकज़ की मद सुन्नित्य है रिबेसअली । दाम–१ ७५ } एअरोसानंद वैशव । । अंथ---भक्तिस्रावनी । । ... लालू- १६१ १ . दिए --ग्रंथ-ईस्या ८६ होऊ ॐ बक्रि । । - १६ } मराज्य उद्दरसल सूत्री संतू३३८ में उत्पन्न हुए ॐ वैर इन्तको मृत्यु संच १६४६ ॐ हुईं ! ये महाशम शेरशाह सूर के समय में भी श्च पृदइकाही थे और कच-काल में ती अक्षर