पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/३०७

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प्रौद माध्यमिक उमा र रूपक इनके बहुत ही विशद हैं और उनका हर स्थान | इसी प्रकार इस महाकवि ने भाषाएँ भी चार प्रकार की लिखी हैं । इन कथनों के उदाहरणस्वरूप इनके रामचरितमानस, कविता- इली, गीतावल, और विनयपत्रिका-नमक ग्रंथ कहे जा सकते हैं और इन्हीं चा अर्थों की न्णालिय पर इनके प्रायः सभी शेष इंथ विभाजित किंE ड; सकते हैं। | स्वामीजी का सर्वोत्कृष्ट गुस्स इनकी अटल भक्कि है, जो स्वाम- संव-भाव की हैं। इन्होंने अपने नायक तथा अपनायकों के शील- मुफ खूब ही निबाहे हैं और ब्राह्मणों की सदैव प्रशंसा की हैं परंतु खधारण देवताओं का पद उच्च नहीं रक्खा है। गोस्वामीजी ने यु-सगुण ब्रह्म, नाम, भक्ति, ज्ञान, सत्संग, माया अादि का बड़ा ही गंभीर निरूपण किया है । ये महाशय भाग्य पर बैठना निंछ । समझते और उद्योग की प्रशंसा करते थे। इनके सत में प्रत्येक अनि बलेवाले का सुगमन करना आवश्यक कर्तब्य हैं। इनके गुण्ड अगाध हैं और उनका दिग्दर्शन तक चहाँ नहीं कराया जा सकता है जो महाशय इस विषय को कुछ दिक्तार से देखना चाहे वे हमारी हिंदी-नवरत्न अवश्कल ऋने का कष्ट उठाचें । इदाइरह- उदित उदय गिरि मंच पर रघुवर बाल अगः । बिकसे संत सरे बन हरखे लोचन भंग । नुषन केर असा निासे नासी । वचन नसतं अवली ३ प्रकास । मानी महिए कुलुई सकुचने । कयटी भूषे उलुक झुकाने । भए बिसरोक कोक मुनि देवा । बरसहिं सुमन जनावहिं सेवा । राः च मे अवध के इर सकार आई सुत भोद मैं भूपति नै निकसे ।