पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/२८४

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२४८
मिश्रबंधु-विनोंद

मिश्रबंधु-विनोद अथवा कविता की । छानेकार्थ नाममाला,रास पंचाध्याय,रूक्समंवाद, हितोपदेश, दुशमस्कंध भागक्त, दानीला, मान , ज्ञानसंज्ञ, +अनैकार्य मंजरी, रूपगंज, नाममंजरी नासचिनमाणे आला ४ समंजरी, विरहमंजरी+ नाम्नमाली, नसकेतु+ पुराया गया, श्रीर श्याम साई नामक ग्रंथ इनके बनाए हुए हैं। इनकी गणना अष्ट- छार में हैं। ये स्वामी बिट्ठलनाथजी के शिष्य थे। शिष्य होने के प्रथम मुक र ये कहे जा रहे थे, पर राह भूलकर सनंद गम में पहुँचे और वहाँ एक अर्की की क्री पर असई हो गए। उस मूवी के संबंधी इनसे पिंह छुटाने में गोकुल चले गए, पर ये मैं पीछे जुने रहे। अंत में विट्ठलनाथजी के उपदेश से इनका मोह भेला हुआ और इनका अगाध प्रेम कृष्णभगवान् में लग गया। यह हाल २१२ वैष्णव की बाद में लिखा है। बाङ राधाकृष्यदास ने भनामावली में लिखा है कि नंददासर्जर का ३३३ वार्ता में समय ब्राह्मण होना लिस्याह हैं, पर बात देखने से प्रकट हुआ कि उसमें मंददास कई केबल ब्राह्मण और किसी तुलसीदासजी का भाई होना कहा गया हैं। इससे ट हैं कि बंदासजी ब्राह्मए थे । इस वक्ष्य में हमारा तुलसीदास-दिषयक प्रबंध हिंदी-नबरस में देखिए । इनकी कविता । बड़ी ही अजस्विनी, मंभर शुद्ध मनोहारी होर्ती थी । रा- पंचाध्यायी पढ़कर चित्त परम प्रसङ हो जाती है । इम इनको छन एक छी श्रेणु ॐ में ।। उलूछ-

अहम हुस, अंकृष्ट बिरह दुख ब्याथ्यो में । । ।

.. केट अरका लगि नरक भोमा दुख भुगते छन में। |... * छोड १६ ० १ ३ १ खोज १६८३ ।। खुज ११०३ । ४ जोर- हो । *.६६ ९ि।३.१० १० ६० । :: :..,