पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/२८१

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आँ; माध्यमिक-अक्कर ३४३ - ई यह कैसा बालक र सुमति जाया है। • सुंदर यदन कम दुल लोचन देख चंद जया है । पृरन ब्रह्म अलख अबिनासं प्रगट नंद घर आया हैं । परमानंद कृष्छ मन मोहन्द चरन कमल चित अन्य है। देड़ हावाले टूटी । । उप कमल दल माल मर्जी बास कपल अल्लक लट झूटी । बहर डर उज्ड क्र. पर अंकित बाहु जुग्गुल बलयदक्ष छूटी ; कंयुॐ वीर बिबेध रँग रेजित गिरिधर अधर माधुरी चूटी ।। लस बजित नैन अनिवारे असन उनी रखनी बूटी ; । मार्नेद प्रभु मुनि समै रस मंइन नृपति की मैना सुटी । ह क बैकुठ जाय । जई नर्चि अँड जहाँ नहीं जसदा ज्ञहैं नहिं गोपी ग्वाल न भाय।। जहें नहिं जल जमुना को निभद्र और नहीं कदमन की छथि ।। परमानंद त्र चतुर ग्वालिये ब्रञ्चरज दज मैरि ज्ञाय बाय । | ( ५ ५ ) कुंभनदास को भाउज वल्लभाचार्यजी के शिष्य अंपर्ने समय के पूरे ऋषि थे । एक अर अकबर के बुलाने पर इन्हें फतेहपुर सीकरी द्धन्दा ए और अह अकबर शाह द्वारा सम्मानित भी हुए, परंतु फिर भई । इन्हें अहँ ना समय को नष्ट करना-मान्न समझ पड़ा । इनकी अविता में शुमार-रस का प्राधान्य सुझ पढ़ता है, परंतु यह कृष्णा बंद से पूर्ण हैं । हम कृविता की दृष्टि से इनकी उना साधारण श्रेणी में करेंगे । इनक्की भी गिनती अष्टछाप में थी। श्रायका कोई . अब देखने में नहीं आया, परंतु इक्के प्रायः ४० पद हमारे पास हैं । ये महाशय सुदैव परम दरिद्री रहे, परंतु इम्झने कभी किसी इ ि बादशाहू में धन बेन स्वीकार न किया है इनका अईल .