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मिश्रबंधु-विनोंद

२३ मिश्रबंधु-विदोद जो अब अर्शी मरें सौ मैं कौन नि । कार्स का मैं बासी मन नाम मेरा श्रर्बन ; .

  • क बेर हरिनाम बिसात एकर जोताहा औला ।

माई मोरे कौन बिना ढाना । महात्मा कबीरदासजी ने प्रायः साधारण बात है। मैं इ. कहा है । ॐ महम्म रामानंद के शिष्य थे और रखनाथजी को

  • मानते थे। इन्होंने इन दोनों महात्माओं के विषय में दो मॅथ

भी अनाम् । इनके कथन देखने में तो साधारण समझ पड़ते है, परंतु इनमें गूढ़ अाशय छिपे रहते हैं । इन्होंने रूप, दृष्टांत, उत्प्रेक्षा अदि से धर्म-संबंधी ऊँचे विचारों यु सिद्धांतों को सफलतापूर्वक व्यक्त किया है। साधारण भजनों में प्रायः कबीरदास भे संसार की असर दिखाई है। यथा - दुल्लहिली . गाव . मंगलवार • हम अहि अाये. रजा राम भरतार । .. . चल रत कर मन रत करिहूँ, पाँचौ तत्व बरात १ . राम हमारे पहुने आए में जोबन भई माती । .. सुर तेर्तों कौतुक श्रादु मुनि वम् कोटि अठासी । कह ऋवर मोहिं ब्याचले हैं पुरुष एक अबिलासी । | ( ३६) भगोदास या भग्दास .. भदास ने बीज-नामक ग्रंथ बनाया है। ये मुहदमः ऋबीर मृदय के राशय ६ । इनका समय : संवत् १४७७ के लाभ । ३.७ } विगाल ने सुखनिधान अंथ सं० १४७७ में रचा । यह भ कबीरदास के चेले थे । ::... ::., ..। ... ३८) नामदेव इते हैं कि ये इशय वैष्णु-संप्रदायवाले स्वामी ज्ञानदेव